الثلاثاء، 23 أغسطس 2016

لوعة الهدير / بقلم رنا كنفاني...


لوعة الهدير
.. قال لها.. 
هل سبق الموج.. 
رنين صداه..
وعزف ناشده.. 
تنهيدة رصعتها.. 
حروف تراكمت... 
على أوتار قيثارته.. 
أراك أنت والأمواج... 
نبيذ حرف... 
ينثر طيفك...
اللؤلؤ.. وبريقه.. 
يراقص سفنه..
يتراءى البحر.. 
كشراع يغتدي.. 
لغد يسكب شروقه.. 
يعانق شروده للهيام.. 
يتسنى لي نخبه.. 
وأنت مزيج كأسه.. 
احتجز بك.. 
لعالم مكنون.. 
يترجم اشواقه... 
للعيون يبور.. 
يبث فيه إعصار.. 
ليشيد شعاعه... 
لهفات وصيحات.. 
إليك جوارح النوى.. 
قدت مراكبه... 
عبر شط الأحلام... 
ناسيا جموح القلب.. 
ممزق العنين بأنين.. 
يراود حضورك... 
داخل حجور المغيب.. 
وهج يتألق لنداءات.. 
تستقطب الوريد... 
عند مرافئ الشمس.. 
ترتقي أمسية الولهان.. 
تهتدي إليه... 
حورية تجري فيه.. 
وتسبح ريحانته...
ليعبق حنينه.. 
ويطرب لحنه.. 
الباحث لثناياه... 
المجرد إليك نبض... 
أغلق بك.. 
ف صانه الوداد 
.. لبراعم يراعك...
بقلم رنا كنفاني...

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